ज़िन्दगी की नज़्म।
ज़िन्दगी की नज़्म।
अब तो काफ़ी जैसी कड़वी बातें भी ।
दूध सी उजयारी लगती है।
उम्र के इस गलियारे में।
सब बातें हिजाब नज़्म सी बन गूंजती हैं।
तेरी कड़वी मीठी बातें।
दिमाग में ऐसे छा जाती है।
लेखनी की बन स्याही।
कागजों पर जज़्बात बन लिख जाती है।
जब तेरी खुशबू महसूस कर ।
हम बहक जाते है।
सामने अगर तु आ जाए।
फिर क्या हमारी कहानी बन जाती है।
ना दर्द का आलम कोई।
ना खुशियों की दस्तक से।
डोलता है ये पागल मन।
हर बार बस तेरे दीदार की चाहत बन जातीं हैं।
नफ़ा नुकसान ना सोचता है।
मोहब्बत की इबादत में।
हर बार झुक जाता है।
हर बार तूझे पाने की चेतना बन जातीं हैं।
क्या भरोसा कितने दिन।
हम है तुम्हारे साथ।
तुच्छ कष्ट भी तेरे लिए हम ना सह सकें।
ये जज़्बा इस प्यार की कटार बन जाती है।
खुशबुएँ अपनी उड़ा दी।
तूझे अपने में पनाह देकर।
ना बचा कोई वजूद मेरे किरदार का।
ये सद़का उल्फ़त की ज़िन्दगानी बन जाती हैं।
नीलम गुप्ता 🌹🌹( नजरिया )🌹🌹
दिल्ली
Aliya khan
22-Mar-2021 12:59 PM
Bahut khoob
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NEELAM GUPTA
18-Mar-2021 02:47 PM
धन्यवाद जी
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kapil sharma
17-Mar-2021 09:23 AM
👍👍👍
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